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Sunday, 16 February 2025

रुक्मिणी देवी मंदिर द्वारका गुजरात

यहाँ जल का दान कीया जाता है कहते हैं कि यहां जल के दान

करने से पितृ को मुक्ति मीलती है  !

         द्वारकाधीश मंदिर से 2 km की दूरी पर स्थित है, यह मंदिर द्वारका की सीमा में ना होते हुए नगर के बिलकुल बाहर बना हुआ है। माना जाता है की यह मंदिर 2,500 साल पुराना है इसका जीर्णोद्धार 12 वीं शताब्दी में हुआ था । मंदिर की दीवारों पर हाथी, घोड़े, देव और मानव मूर्तियाँ की नक्काशी की गई है। देवी मंदिर में पानी का दान करना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस मंदिर में आने वाले सभी भक्तों को वह कथा सुनाई जाती है जिस भूल की वजह से श्रीकृष्ण और देवी रुक्मणी को अलग रहना पड़ा था।

       यादवों के कुलगुरु, ऋषी दुर्वासा का आश्रम द्वारका से कुछ दूरी पर, पिंडारा नामक स्थान में था। एक बार श्रीकृष्ण व रुक्मिणी के मन में उनका अतिथी सत्कार करने की इच्छा उत्पन्न हुई। वे दोनों अपने रथ में सवार होकर ऋषी को निमंत्रण देने उनके आश्रम पहुंचे। दुर्वासा ऋषि ने भगवान कृष्ण व रुक्मिणी का निमंत्रण तो स्वीकार कर लिया लेकिन उन्होंने एक शर्त भी रख दी। दुर्वासा ऋषि ने कहा कि उन्हें ले जाने वाले रथ को न तो घोड़े हांकेंगे ना ही कोई अन्य जानवर। बल्कि रथ को केवल कृष्ण व रुक्मिणी हांकेंगे। दुर्वासा ऋषि रथ पर बैठे और भगवान श्रीकृष्ण देवी रुक्मणी के साथ रथ खींचने लगे। रास्ते में देवी रुक्मणी को प्यास लग गई। उनका कंठ सूखने लगा। स्थिति को भांप कर कृष्ण ने शीघ्र अपने दाहिने चरण का अंगूठा धरती पर दबाया। और वहीं गंगा नदी प्रकट हो गयीं। गंगा के जल से रुक्मणी और कृष्ण ने प्यास बुझा ली लेकिन दुर्वासा  ऋषि  से जल की पेशकश नहीं की। कृष्ण जी और देवी रुक्मणी के इस व्यवहार से ऋषि दुर्वासा को क्रोध आ गया। क्रोध में आकर दुर्वासा ऋषि ने भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मणी को अलग रहने का शाप दे दिया। साथ ही यह भी कहा कि जिस जगह गंगा प्रकट हुई है, वह स्थान बंजर हो जाएगा। दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण ही यहां जल का दान किया जाता है। कहते हैं यहां जल दान करने से पतरों को जल की प्राप्ति होती है और उनको मुक्ति मिलती है। यही कारण है कि रुक्मिणी का मंदिर कृष्ण मंदिर से दूर बनाया गया है।






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Thursday, 13 February 2025

ठाकुरद्वारा भगवान नारायणजी मंदिर पंडोरी धाम पंडोरी महंतन गांव गुरदासपुर जिले पंजाब

ठाकुरद्वारा भगवान नारायणजी (जिसे पंडोरी धाम के नाम से जाना जाता है  ) रामानंदी संप्रदाय से संबंधित एक ऐतिहासिक हिंदू मंदिर है ,   पंजाब के गुरदासपुर जिले के पंडोरी महंतन  गाँव में स्थित है। *यह भारतीय उपमहाद्वीप के बावन वैष्णव द्वारों में से एक है

 जिसमें बैरागियों को संगठित किया गया है।  मंदिर की स्थापना रामानंदी संत श्री भगवानजी  और उनके शिष्य श्री नारायणजी  ने की थी , जिनके नाम पर मंदिर का नाम रखा गया है। मंदिर अपने शानदार बैसाखी मेले के लिए जाना जाता है।

पंडोरी धाम में वैष्णव प्रतिष्ठान की स्थापना स्थानीय रामानंदी संत श्री भगवानजी ने की थी, जो गुरदासपुर के कहनूवान शहर में पैदा हुए डोगरा खजूरिया ब्राह्मण थे । स्थानीय परंपरा के अनुसार, श्री भगवानजी ने अपने प्रारंभिक वर्षों के दौरान राजस्थान के गलता धाम के रामानंदी संत श्री कृष्णदास पयहारी से भेंट की थी , जिन्होंने उन्हें रामानंदी वैष्णव संप्रदाय में सम्मिलित किया था। यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर ने जम्मू और हिमाचल की पहाड़ियों की हिंदू रियासतों की निष्ठा जीती है । रियासतों विशेष रूप से नूरपुर , जम्मू, मनकोट , गुलेर , बसोहली , चंबा , बंदराल्टा , जसरोटा , जसवां के राजपूत शासक विशेष रूप से पंडोरी धाम के प्रति समर्पित थे।  कहा जाता है कि पंडोरी धाम के दूसरे महंत श्री नारायणजी को जहांगीर ने मारने का प्रयास किया पर वे बच गए। पंडोरी की दरगाह को महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल के दौरान शाही संरक्षण भी प्राप्त हुआ था , जो अक्सर दरगाह की यात्रा करते थे। 

यहां बैसाखी मेला 1 वैसाख से 3 वैसाख तक तीन दिनों तक चलता है। उत्सव 1 वैसाख की सुबह जुलूस के रूप में शुरू होता है, जिसमें ब्रह्मचारी और भक्त महंत को पालकी में बिठाकर ले जाते हैं । उसके बाद नवग्रह पूजा की जाती है और धन, अनाज और गायों का दान किया जाता है।  शाम को, संकीर्तन आयोजित किया जाता है जिसमें महंत धार्मिक प्रवचन देते हैं और पताशा ( बतासे) का प्रसाद वितरित करके इसका समापन करते हैं । तीर्थयात्री मंदिर में पवित्र तालाब में स्नान भी करते हैं।











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Sunday, 26 January 2025

सूर्य देव मंदिर(सूर्य कुंड मन्दिर)अमादलपुरय मुनानगर हरियाणा

पुरे भारत वर्ष मे केवल दो ही ऐसे मन्दिर है जहां सूर्य ग्रहण का कोई असर नहीं पड़ता उनमें से एक यह मंदिर है*

भारत के गौरवमयी इतिहास को संजोये यह सूर्य मन्दिर  हरियाणा के  यमुनानगर जिले के गांव अमादलपुर में है। इस मंदिर पर सूर्य ग्रहण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता  इसलिए सूर्य ग्रहण के दिन साधू संत और श्रद्धालु दूर-दूर से यहां माथा टेकने आते हैं। पूरे भारत वर्ष में केवल दो ही ऐसे मंदिर हैं जहां सूर्य ग्रहण का कोई असर नहीं पड़ता। सूर्य ग्रहण के अवसर पर भी ये दोनों मन्दिर खुले होते हैं। बताया जाता है कि भारत वर्ष में इस तरह के 68 कुंड है लेकिन पूरे भारतवर्ष मे सूर्यकुंड मन्दिर केवल दो ही हैं।

एक मंदिर है उड़ीसा का कोणार्क और दूसरा है हरियाणा के यमुनानगर में स्थित सूर्यकुण्ड मन्दिर। मन्दिर के पुजारी के अनुसार सूर्यग्रहण के समय मन्दिर के प्रांगण में आने-वाले किसी भी प्राणी पर ग्रहण का कोई असर नहीं पड़ता।  मन्दिर के प्रांगण में सूर्य कुंड इस प्रकार से बना है क‍ि सूर्य की‍ किरणें इस प्रकार पड़ती हैं कि वो कुंड मे ही समा जाती हैं।

 त्रेता के मध्य से कुछ पूर्व सूर्यवंश के राजा मंधाता ने सौभरी ऋष‍ि को आर्चाय बना कर राज सूर्ययज्ञ किया।  ऋषि ने यज्ञ भूमि को खुदवा कर उसमें पानी भरवा दिया और इस कुंड का नाम सूर्यकुंड रख दिया। पांडवों ने भी इसी सूर्य मन्दिर में स्नान कर पूजा-अर्चना की थी। मन्दिर की ऐसी मान्यता है कि यहां के सूरजकुंड में स्नान करने से सभी रोग दूर हो जाते हैं।











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Wednesday, 1 January 2025

बिरला गणपति मंदिर, मुम्बई - पुणे हाईवे, महाराष्ट्र

बिरला गणपति मंदिर, पुणे के समीप 25KM से पुराना पुणे मुंबई राजमार्ग पर सोमातेन टोल प्लाजा के पास है। प्रतिमा विशाल है और अच्छी दूरी से दिखाई देती है। कुल मिलाकर यह सूर्यास्त देखने के लिए भी एक अच्छी जगह है। यदि लोनावाला / खंडाला / पावना जाए तो सुर्यास्त के समय यहाँ का नजारा मनमोहक रहता है। 


         यह जगह पुराने पुणे-मुंबई राजमार्ग पर पुणे से लगभग 30KM दूर है और सोमताने टोल प्लाजा के पास है। इसे बिड़ला मंदिर के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह बिड़ला द्वारा निर्मित है। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए लगभग 100 सीढ़ियाँ हैं। प्रतिमा बहुत बड़ी और विशाल है। ऊपर से देखने का दृश्य बहुत अच्छा है। यहां देखने के लिए बहुत कुछ नहीं है। आप लगभग 1 घंटे बिता सकते हैं।

          इस मंदिर को बिरला गणपति मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, जो पुराने मुंबई-पुएन एनएच 4 के पास प्यून से 30Km की दूरी पर है, जिस रास्ते पर टॉम प्राटी शिरडी है।  श्रीगांव की श्री मंगल मूर्ति मोर्य गणपति की मूर्ति, भगवान गणेश की 54 फीट की मूर्ति है, जो 18 फीट लंबे आधार पर एक पहाड़ी पर स्थित है, जो मुंबई पुणे NH4 राजमार्ग पर सोमतेन फाटा, तालेगाँव में स्थित है। 

         गणेश प्रतिमा को लगाने के लिए करीब 180 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।  मानसून के मौसम में NH4 का दृश्य वास्तव में ऊपर से ठंडा दिखता है। जैन कलश मंदिर एनएच 4 ओल्ड मुंबई पुणे राजमार्ग के पार, ऊपर से काफी दिखाई देता है। मंदिर की शीर्ष सीमाओं के सभी कोनों से गणपति की मूर्ति तक फ्लैश-लाइट्स लगी हुई हैं।

कैसे_पहुंचे

बिरला गणपति मंदिर तक पहुंचने के लिए, आपको पुराना मुंबई प्यून रोड लेना होगा और टोल नाके को पार करने के बाद आपको पहले बाएं मोड़ को शिरगाँव गाँव की ओर ले जाना होगा। सड़क के प्रवेश द्वार पर प्रीति शिरडी का एक बड़ा होर्डिंग है। 500 मीटर के बाद एक बाएं टर्न लेते हैं जो मंदिर की आधार पार्किंग में जाता है।







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Wednesday, 30 October 2024

काली माता मंदिर कालीबाड़ी आग्रा उत्तर प्रदेश

काली माता मंदिर कालीबाड़ी आग्रा उत्तर प्रदेश

रहस्यमयी मंदिर:-कलीबाड़ी में बना मां काली का रहस्यमय मंदिर जिसके घट से कभी पानी नही होता खत्म!

 कालीबाड़ी का मंदिर बहुत ही रहस्यमई है इस मंदिर की स्थापना के वक्त एक घट मिला था और उस घट में आज भी पानी भरा हुआ है.उसकी विशेषता है कि उस घाट के पानी में कोई कमी नहीं आई है और ना ही उस पानी में कभी कीड़े पड़ते हैं |

आगरा के कालीबाड़ी में काली माता का 200 साल से भी ज्यादा पुराना प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह आगरा में बंगालियों के द्वारा स्थापित किया गया एकमात्र मंदिर है. इस रहस्यमयी मंदिर के साथ कई चमत्कारिक घटनाएं जुड़ी हुई है. यहां के पुजारी बताते हैं कि इस मंदिर की स्थापना के वक्त एक घट मिला था और उस घट में आज भी पानी भरा हुआ है.उसकी विशेषता है कि उस घाट के पानी में कोई कमी नहीं आई है और ना ही उस पानी में कभी कीड़े पड़ते हैं|

  200 साल से पुराना है रहस्यमय कालीबाड़ी का काली मंदिरकालीबाड़ी मंदिर की स्थापना के बारे में डॉ.एके भट्टाचार्य जो कि पेशे से ईएनटी सर्जन है वे बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण उनके पूर्वजों ने लगभग सन 1800 के आसपास करवाया था. ये मंदिर 200 साल से भी ज्यादा पुराना है. इसके साथ ही इस मंदिर में कई ऐसे चमत्कार हुए हैं. जिसकी वजह से मंदिर आज भी रहस्यमई है. A K भट्टाचार्य बताते हैं कि उनके पूर्वज स्वर्गीय द्वारकानाथ भट्टाचार्य जो उस समय बंगाल में रहते थे.बंगाल में प्लेग की भयंकर बीमारी फैली थी और उसके बाद वे आगरा यमुना के किनारे आकर रहने लगे.वहां पर भी उस समय एक मंदिर था. जिसे अंग्रेजों ने तुड़वा दिया. उसके बाद से द्वारकानाथ यहां कालीबड़ी चले आये. जिस जगह पर काली का मंदिर है वहां रहने लगे. मां काली ने सपने में आकर द्वारका नाथ को अपने यमुना किनारे होने का एहसास कराया और उसके बाद मां की मूर्ति और उस घट को अपने साथ लेकर आए जो मंदिर में आज भी मौजूद है|

काली के मंदिर में ऐसा रहस्यमयी घट जिसमें से कभी पानी नहीं होता ख़त्मडॉ देवाशीष भट्टाचार्य बताते हैं कि माता के मंदिर में वही 200 साल पुराना घट स्थापित है, जिसे उनके पूर्वज यमुना के किनारे से लेकर आए थे. उसकी विशेषता है उसमें से पानी कभी कम नहीं होता, ना ही पानी कभी सूखता और उस पानी में आज तक कीड़े नहीं पड़े है. उस पानी का उपयोग रोजाना चिन्ना मृत के रूप में किया जाता है. भक्तों की बड़ी मान्यता है. लोग बड़ी दूर से माता रानी के मंदिर में माथा टेकने के लिए आते हैं और अपनी मुरादे मांगते हैं. माता रानी हर भक्तों की मुराद को पूरा करती है|

   पुराने समय में बकरे की दी जाती है बली, अब बकरे की जगह पेठे की दी जाती है बलि मंदिर के पुजारी बताते हैं कि इस मंदिर में पुराने समय में मां काली के सामने बकरे की बलि दी जाती थी .लेकिन लोगों की आपत्ति और उनकी भावनाओं को देखते हुए बकरे की बलि को समाप्त कर दिया गया है. अब बकरे की जगह है यहां पेठे की बलि दी जाती है. इसके साथ ही अगर कोई भक्त सात शनिवार सच्चे मन से यहां शीश झुकाता है तो काली मां उस भक्तों के ऊपर से शनि की बुरी दशा हमेशा के लिए समाप्त कर देती है. यह बेहद रहस्यमय और चमत्कारी मंदिर है. जिसके दर्शन करने के लिए हजारों की संख्या में हर साल भक्त आते हैं|










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Saturday, 26 October 2024

गोपाचल जैन धर्मावलंबियों का अनूठा तीर्थ स्थल, जहां पर्वत पर स्थापित हैं हजारों जैन मूर्तियां,ग्वालियर,मध्यप्रदेश् मे स्थित है

गोपाचल पर्वत

गोपाचल जैन धर्मावलंबियों का अनूठा तीर्थ स्थल, जहां पर्वत पर स्थापित हैं हजारों जैन मूर्तियां,ग्वालियर,मध्यप्रदेश् मे स्थित है।

भारत के मध्य प्रदेश राज्य में स्थिति ग्वालियर अपने प्राचीन किलो महलों और प्राचीन मंदिर के लिए जाना जाता है उनमें से ही एक प्राचीन जगह है Gopachal Parvat (गोपाचल पर्वत) इस पर्वत पर हजारों की तादाद में पर्वत को तराशकर जैन मूर्तियां बनाई गई हैं यहाँ पर स्थित पार्श्वनाथ मंदिर गोपाचल का श्रेष्ठ धार्मिक स्थल है, जिसे जैन धर्म का प्रमुख धार्मिक केंद्र माना जाता है। आज हम इस पर्वत के इतिहास एवं विशेषताओं के बारे में आपको बताएंगे। 

यह स्टूडियोधर्मा के लिए बहुत ही आनंद एवं सौभाग्य की बात है की ऐसे पवित्र,पावन और प्राचीन तीर्थ छेत्र गोपाचल पार्वत के दर्शन परम पूज्य आर्यिका पूर्णमति माता जी के सानिध्य में किए ।

गोपाचल पर्वत ग्वालियर में स्थित बहुत प्राचीन जगह है यहां हजारों की संख्या में जैन भगवान की मूर्तियां सन् 1398 से 1536 के बीच पर्वत को तराशकर बनाई गई है इन मूर्तियों का निर्माण तोमर वंश के राजा वीरमदेव, डूंगरसिंह व कीर्तिसिंह के शासन काल में कराया गया था। 

लोक मत की मानें तो 22 वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ के शासनकाल में जैन श्रावकों ने गोपाचल पर्वत पर भगवान पार्श्वनाथ, केवली भगवान और 24 तीर्थंकरो की 9 इंच से लेकर 57 फुट तक की प्रतिमाएं बनाई गई थी। यहां जैन धर्मावलंबियों के तीर्थंकरों की एक से बढ़कर एक प्रतिमाएं देखने को मिलती हैं।

जैन धर्म के अनुयायियों के लिए गोपाचल पर्वत एक पवित्र स्थान है। ग्वालियर किला, जो कि पूरी दुनिया में मशहूर है उसका स्थान भी गोपाचल पर्वत पर है। इस पर्वत पर भगवान पार्श्वनाथ, केवली भगवान, और 24 तीर्थंकरों की 9 इंच से लेकर 57 फुट तक की प्रतिमाएं बनाई गई हैं, इस स्थान पर 26 गुफाएं हैं, जिनमें सभी में भगवान पार्श्वनाथ और अन्य तीर्थंकरों की खड़ी और बैठने की मुद्रा में प्रतिमाएं स्थापित हैं। जो जैन धर्म के लोगों के लिए उत्साह और श्रद्धा का प्रतीक हैं। गोपाचल पर्वत जैन धर्म में एक प्रमुख धर्मस्थल है, जहां वे अपने आत्मा की शुद्धि और मन की शांति के लिए आते हैं।

मूर्तियां नष्ट करने का दिया आदेश

इतिहास कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है। ऐसा ही एक घटना है जब मुगल सम्राट बाबर ने गोपाचल पर्वत पर अपना कब्जा कर लिया था। तब सम्राट बाबर ने गोपाचल पर्वत में बनाई गई मूर्तियों को नष्ट करने का आदेश दिया था। लेकिन इस प्रयास के दौरान एक घटना हुई बाबर ने भगवान पार्श्वनाथजी की मूर्ति पर हमला किया। इस हमले के समय एक अद्भुत घटना घटी, जो लोगों के हृदय में चमत्कार भर देती है। 

दिव्य शक्तियों की कृपा से बाबर और उसके सैनिक की भुजाओं में शक्ति नहीं रह गई और वे वहां से भाग खड़े हुए और मूर्तियों को नष्ट नहीं कर पाए। आज भी यहां हजारों की तादाद में मूर्तियां बनी हुई है क्योंकि ऐसी प्रतिमाएं आज के दौर में बनाना बेहद मुश्किल है। बता दें आज भी यहाँ विश्व की सबसे विशाल 42 फुट ऊंची पद्मासन पारसनाथ की मूर्ति अपने अतिशय से पूर्ण है एवं जैन समाज के परम श्रद्धा का केंद्र है। 

गोपाचल पर्वत की गहराईयों में छिपे इसके ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व को समझने के लिए, आपको इसे एक बार जरूर देखना चाहिए। यहां के प्राचीन मंदिर, तीर्थंकरों की प्रतिमाएं और शांतिपूर्ण वातावरण आपको शांति और आनंद का अनुभव कराएंगे।

यद्यपि ये प्रतिमाएं विश्व भर में अनूठी हैं, फिर भी अब तक सरकार का इस धरोहर पर कोई विशेष ध्यान नही गया है और न ही सरकार ने इनके मूल्य को समझा है।







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Thursday, 17 October 2024

श्री रामचंडी हनुमान मन्दिर रामचंडी पुरी ओडिशा

माना जाता है सीता जी की खोज के लिए श्री हनुमानजी ने इसी तट से श्रीलंका जाने की योजना बनाई थी!

श्री रामचंडी हनुमान मन्दिर ,जो श्री श्री पंचमुखी हनुमान मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है, ओडिशा राज्य में रामचंडी,पुरी में स्थित है।

ऐसा माना जाता है कि, श्री हनुमान जी यहाँ माँ रामचंडी देवी के सानिध्य मे कुछ समय के लिए रुके थे। सीता जी की खोज के लिए, श्री हनुमान ने उड़ीसा के इसी तट से श्री लंका जाने की योजना बनाई । फिर, कोनार्क की रक्षक माँ रामचंडी देवी ने श्री हनुमान जी को श्री लंका जाने के लिए भारत का दक्षिण भाग से जाने का दिशा निर्देश दिया। क्योंकि लंका तक जाना इस तट की बजाय दक्षिण तट से ज्यादा सुगम है।

प्रारंभ में जब मंदिर के चारों ओर जंगल हुआ करता था, तब यहाँ हनुमान जी का छोटा विग्रह था, बाद में यहाँ पंचमुखी हनुमान जी को स्थापित किया गया।

मंदिर के गर्भग्रह में पंचमुखी हनुमान विराजमान हैं, यहाँ बैठकर भक्तगण हनुमान चालीसा और श्री हनुमंत 108 नामावली का पाठ करते हैं।






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Saturday, 12 October 2024

साल में एक बार खुलते हैं दशानन मंदिर के द्वार, रावण की पूजा के उमड़ती है भारी भीड़

दशानन मंदिर शिवाला कानपुर उत्तर प्रदेश 

साल में एक बार खुलते हैं दशानन मंदिर के द्वार, रावण की पूजा के उमड़ती है भारी भीड़

इस वर्ष 12 अक्टूबर, शनिवार के दिन देशभर में दशहरा पर्व मनाया जाएगा। पूरा देश हर्षोल्लास के साथ इस पर्व को मनाता है और कई हिस्सों में रावण दहन किया जाता है। इस दिन देवी दुर्गा के विसर्जन और भगवान राम की पूजा की जाती है और सभी लोग इस दिन सुबह-सुबह ही पूजा अर्चना करने लगते हैं। लेकिन इसी के बीच एक अजीबो-गरीब स्थान है जहां भगवान राम की नहीं बल्कि रावण की पूजा की जाती है। इसके अलावा आश्चर्य की बात यह भी है की यहां दशानन का मंदिर सालभर में एक बार विजयादशमी के दिन खुलता है। यहां दशानन मंदिर में रावण की पूजा के लिए लोगों की भीड़ उमड़ती है। उत्तरप्रदेश के कानपुर के शिवाला इलाके में स्थित दशानन मंदिर में भक्त रावण की पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं। ये मंदिर साल में एक बार विजयादशमी के दिन ही खुलता है।

  इस रुप मेें और इस कारण से होती है रावण की पूजा

दशानन मंदिर में शक्ति के प्रतीक के रूप में रावण की पूजा होती है और श्रद्धालु तेल के दिए जलाकर मन्नतें मांगते हैं। परंपरा के अनुसार सुबह 8 बजे मंदिर के कपाट खोले जाते हैं और रावण की प्रतिमा का साज श्रृंगार किया जाता है। इसके बाद आरती होती है। शनिवार की शाम को मंदिर के दरवाजे एक साल के लिए बंद कर दिए जाते हैं। रावण के इस मंदिर के संयोजक के अनुसार मंदिर परिसर में मौजूद विभिन्न मंदिरों में शिव मंदिर के पास ही रावण का मंदिर है

   इसका निर्माण 120 साल पहले महाराज गुरू प्रसाद शुक्ल ने कराया था। संयोजक का कहना है कि रावण प्रकांड पंडित होने के साथ-साथ भगवान शिव का परम भक्त भी था। इसलिये शक्ति के प्रहरी के रूप में इस परिसर में रावण का मंदिर बनवाया गया था।






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Monday, 7 October 2024

गुह्येश्वरी शक्ति पीठ जो काठमांडू मे नेपाल मे स्थिंत् है जहा माता के दोनों घुटने स्थित हैं

गुह्येश्वरी के रूप में होती है माता की पूजा, नेपाल की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है

मुख्य आकर्षण

शक्तिपीठ में माता के दोनों घुटने स्थित हैं।

 गुह्येश्वरी शक्तिपीठ के भैरव कपाली हैं।

सभी शक्ति पीठ पीठों में माता सती के शरीर का कोई ना कोई अंग स्थित होता है, अतः गुह्येश्वरी मंदिर में माता के दोनों घुटने गिरे होने के कारण यह श्री गुह्येश्वरी शक्तिपीठ कहलाया जाता है। यह मंदिर गुह्येश्वरी (गुप्त ईश्वरी) को समर्पित है, देवी को गुह्यकाली भी कहा जाता है। गुह्येश्वरी शक्तिपीठ के भैरव कपाली हैं।

नेपाल के प्रसिद्ध श्री पशुपतिनाथ मन्दिर दर्शन से पहले माता गुह्येश्वरी के दर्शन करना अनिवार्य माना जाता है। इस परंपरा का पालन वहाँ के शाही परिवार के सदस्यों द्वारा अभी भी किया जाता है। अर्थात पहले गुह्येश्वरी मंदिर की पूजा की जाती है उसके उपरांत ही अन्य मंदिरों के दर्शन किए जाते हैं।

यह शक्तिपीठ श्री पशुपतिनाथ मन्दिर से लगभग 1 किमी पूर्व में स्थित है और नेपाल के काठमांडू में बागमती नदी के तट के पास स्थित है। यह हिंदू और विशेष रूप से तांत्रिक उपासकों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। गर्भग्रह की लगभग सभी मूर्तियां सोने एवं चांदी से बनी हुई हैं।

श्री पशुपतिनाथ मंदिर ही की तरह, भारतीय एवं तिब्बती मूल के हिंदुओं तथा बौद्धों को ही मुख्य मंदिर में प्रवेश की अनुमति है। पूजा-आरती के दौरान उपयोग किए जाने वाले कई वाद्य यंत्र राजा राणा बहादुर द्वारा भेंट स्वरूप दिए गए थे।

मंदिर की वास्तुकला भूटानी पगोडा वास्तुकला शैली में बनाई गई है। प्रसिद्ध मृगस्थली वन के निकट एवं बागमती नदी के तट पर स्थित होने के कारण गुह्येश्वरी मंदिर का वातावरण हरियाली एवं फूलों से सजाया गया लगता है। अगर आप श्री गुह्येश्वरी शक्तिपीठ से वन के रास्ते श्री पशुपतिनाथ मन्दिर जा रहे हैं तो, रास्ते में आने वाले शरारती बानरों से थोड़ा सावधान रहें।

दशईं एवं नवरात्रि यहाँ मनाए जाने वाले प्रमुख त्यौहार हैं, श्री पशुपतिनाथ मन्दिर निकट होने के कारण शिवरात्रि एवं सोमवार के दिन यहाँ भी अत्यधिक श्रद्धालु दर्शन हेतु आते हैं।

 पौराणिक कथा

मंदिर का नाम संस्कृत के शब्द गुह्या (गुप्त) और ईश्वरी (देवी) से बना है। ललिता सहस्रनाम में देवी के 707 वें नाम का उल्लेख 'गुह्यरुपिनी' के रूप में किया गया है, जिसका अर्थ है कि देवी का रूप मानवीय धारणा से परे है और यह एक रहस्य है। एक और तर्क यह है कि यह षोडशी मंत्र का गुप्त १६वाँ अक्षर है। गुह्येश्वरी एक शक्ति पीठ है और माना जाता है कि यह वह स्थान है जहां देवी सती के घुटने गिरे थे। यहां देवी को महामाया या महाशिर और भगवान शिव को कपाली के रूप में पूजा जाता है।

मंदिर का उल्लेख काली तंत्र, चंडी तंत्र, शिव तंत्र रहस्य के पवित्र ग्रंथों में भी तंत्र की शक्ति प्राप्त करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में से एक के रूप में किया गया है। देवी गुहेश्वरी का विश्वस्वरूप उन्हें असंख्य हाथों वाली कई और अलग-अलग रंग की देवी के रूप में दिखाता है। मंदिर में दिव्य महिला शक्ति है और इसे सबसे शक्तिशाली पूर्ण तंत्र पीठ माना जाता है क्योंकि यह सत्रह श्मशान घाटों के ऊपर बनाया  !








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Saturday, 5 October 2024

नैनातिवु नागापोशनि अम्मन मंदिर इद्राक्षी शक्ति पीठ श्रीलंका

देवराज इंद्र ने यहाँ पर आदि शक्ति काली की पूजा की थी। दानव-राज रावण (श्रीलंका के शासक या राजा) और भगवान राम ने भी यहाँ देवी शक्ति की पूजा की हैं।

 यहाँ देवी सती की पायल (आभूषण) गिरी थी तथा यहाँ देवी! इन्द्राक्षी शक्ति और राक्षसेश्वर, भैरव  के रूप में अवस्थित हैं। नैनातिवु नागापोशनि अम्मन मंदिर एक प्राचीन और ऐतिहासिक हिंदू मंदिर है। यह मंदिर मां पार्वती को समर्पित है, जिन्हें नागपोशनी या भुवनेश्वरी के रूप में हैं। कहा जाता है कि नवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने इसे शक्तिरूप में पहचाना। ब्रह्माण्ड पुराण में इसका उल्लेख है। मंदिर परिसर में ऊंचे-ऊंचे चार गोपुरम हैं। 1620 में पुर्तगालियों द्वारा प्राचीन संरचना को नष्ट करने के बाद 1720 से 1790 के दौरान वर्तमान संरचना का निर्माण किया गया था। मंदिर में प्रतिदिन लगभग 1000 आगंतुक आते हैं और त्योहारों के दौरान लगभग 5000 आगंतुक आते हैं।

कुछ ग्रंथों के अनुसार यहां सती के शरीर का उसंधि (पेट और जांघ के बीच का भाग) हिस्सा गिरा था। जबकि कुछ ग्रंथों में यहां सती का कंठ और नूपुर गिरने का उल्लेख है। कुछ का मानना है कि श्रीलंका का शंकरी देवी मंदिर ही यह शक्तिपीठ है। मान्यता है कि शंकरी देवी मंदिर की स्थापना खुद रावण ने की थी। यहां शिव का मंदिर भी है, जिन्हें त्रिकोणेश्वर या कोणेश्वरम कहा जाता है। यह मंदिर कोलंबो से 250 किमी दूर त्रिकोणमाली नाम की जगह पर चट्टान पर बना है। यह मंदिर त्रिकोणमाली जिले की 1 लाख हिंदू आबादी की आस्था का भी केंद्र है। त्रिकोणमाली आने वाले लोग इसे शांति का स्वर्ग भी कहते हैं।

उल्लेखनीय है कि बिहार के मगध में माता के दाएं पैर की जंघा गिरी थी। इसकी शक्ति है सर्वानंदकरी और भैरव को व्योमकेश कहते हैं। यह 108 शक्तिपीठ में शामिल है।

देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। साधारत: 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। तंत्रचूड़ामणि में लगभग 52 शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है। प्रस्तुत है माता सती के शक्तिपीठों में इस बार इन्द्राक्षी शक्तिपीठ कोनेश्वरम मंदिर ट्रिंकोमाली श्रीलंका शक्तिपीठ के बारे में जानकारी।

देवी पुराण के अनुसार 51 शक्तिपीठों की स्थापना की गयी है और यह सभी शक्तिपीठ बहुत पावन तीर्थ माने जाते हैं। वर्तमान में यह 51 शक्तिपीठ पाकिस्तान, भारत, श्रीलंका,और बांग्लादेश, के कई हिस्सों में स्थित है।

कुछ महान धार्मिक ग्रंथ जैसे शिव पुराण, देवी भागवत, कालिक पुराण और अष्टशक्ति के अनुसार चार प्रमुख शक्ति पिठों को पहचाना गया है,

नैनातिवु नागापोशनि विवरण

नैनातिवु नागापोशनि अम्मन मन्दिर एक प्राचीन और ऐतिहासिक है हिंदू मंदिर के बीच स्थित पाक जलडमरूमध्य के द्वीप पर Nainativu , श्रीलंका । यह पार्वती को समर्पित है, जिन्हें नागपौशनि या भुवनेश्वरी और उनके शिव के रूप में जाना जाता है , जिन्हें शिव का नाम नयनार है। मंदिर की प्रसिद्धि को 9 वीं शताब्दी के हिंदू दार्शनिक आदि शंकराचार्य से मान्यता प्राप्त है , इसे प्रमुख 64 शक्ति पीठों में से एक के रूप में पहचानने के लिएमें शक्ति पीठ Stotram और अपने उल्लेख ब्रह्माण्ड पुराण । मंदिर परिसर में चार गोपुरम (प्रवेश द्वार टॉवर) हैं, जिनकी ऊँचाई 20-25 फीट है, जो सबसे ऊंचे पूर्वी राजा राजा गोपुरम में 108 फीट ऊंचा है। मंदिर के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतीक है तमिल लोगों , और में प्राचीन काल से उल्लेख किया गया है तमिल साहित्य , जैसे Manimekalai और कुण्डलकेसि । 1620 में पुर्तगालियों द्वारा प्राचीन संरचना को नष्ट करने के बाद 1720 से 1790 के दौरान वर्तमान संरचना का निर्माण किया गया था। मंदिर में प्रतिदिन लगभग 1000 आगंतुक आते हैं, और त्योहारों के दौरान लगभग 5000 आगंतुक आते हैं। वार्षिक 16-दिवसीय महोस्तवम (थिरुविझा)Aani (जून / जुलाई) के तमिल महीने के दौरान मनाया जाने वाला त्योहार - 100,000 से अधिक तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है। इस नवनिर्मित मंदिर में अनुमानित 10,000 मूर्तियां हैं।

 किंवदंती 

माना जाता है कि नागपोशानी अम्मन मंदिर को मूल रूप से भगवान इंद्र द्वारा स्थापित किया गया था, जबकि गौतम महर्षि के शाप से मुक्ति की मांग की गई थी । संस्कृत महाकाव्य महाभारत रिकॉर्ड कि इन्द्रदेव के लिए अपनी यौन इच्छाओं से दूर था अहिल्या , की पत्नी गौतम महर्षि । इंद्र ने खुद को संत के रूप में प्रच्छन्न किया और अहल्या के साथ छेड़खानी और प्यार करने के लिए आगे बढ़े। जब संत को पता चला, तो उन्होंने इंद्र को शाप दिया कि उनके शरीर पर पूरे एक महीने के लिए योनी (मादा प्रजनन अंग) जैसा दिखता है। इंद्र का उपहास किया गया और उन्हें सा-योनी कहा गया । अपमान का सामना करने में असमर्थ, वह निर्वासित होकर मनिद्वीप ( नैनातिवु) के द्वीप पर चला गया)। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए देवी की मूलास्थन मूर्ति का निर्माण, पूजन किया । ब्रह्मांड की रानी, भुवनेश्वरी अम्मान , इंद्र के अत्यंत भक्ति, पश्चाताप से संतुष्ट और पश्चाताप उसके सामने प्रकट और तब्दील वे yonis आँखों में उसके शरीर पर। उसने तब "इन्द्राक्षी" (इंद्र नेत्र) का नाम लिया। 

शक्ति पीठम् 

शक्तिपीठों   देवी शक्ति , पार्वती , दक्षिणायनी , या दुर्गा , हिंदू धर्म की महिला प्रधान और शक्ति संप्रदाय के मुख्य देवता के लिए पूजा की जगहें हैं। उन्हें पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में छिड़का जाता है। शक्ति शक्ति की देवी हैं और आदि पराशक्ति का पूर्ण अवतार हैं । ब्रह्माण्ड पुराण , प्रमुख अठारह में से एक पुराण , देवी के 64 शक्ति पीठ उल्लेख पार्वती में भारतीय उपमहाद्वीपवर्तमान भारत सहित

तीर्थ यात्रा 

इस मंदिर का तीर्थ वर्ष भर बनाया जा सकता है। हालांकि, मंदिर की यात्रा करने के लिए सबसे लोकप्रिय समय 16 दिन भर के दौरान होता है Mahotsavam (Thiruvizha त्योहार) कि में प्रतिवर्ष मनाया जाता है तमिल के महीने Aani (जून / जुलाई)।







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