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Monday, 7 October 2024

गुह्येश्वरी शक्ति पीठ जो काठमांडू मे नेपाल मे स्थिंत् है जहा माता के दोनों घुटने स्थित हैं

गुह्येश्वरी के रूप में होती है माता की पूजा, नेपाल की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है

मुख्य आकर्षण

शक्तिपीठ में माता के दोनों घुटने स्थित हैं।

 गुह्येश्वरी शक्तिपीठ के भैरव कपाली हैं।

सभी शक्ति पीठ पीठों में माता सती के शरीर का कोई ना कोई अंग स्थित होता है, अतः गुह्येश्वरी मंदिर में माता के दोनों घुटने गिरे होने के कारण यह श्री गुह्येश्वरी शक्तिपीठ कहलाया जाता है। यह मंदिर गुह्येश्वरी (गुप्त ईश्वरी) को समर्पित है, देवी को गुह्यकाली भी कहा जाता है। गुह्येश्वरी शक्तिपीठ के भैरव कपाली हैं।

नेपाल के प्रसिद्ध श्री पशुपतिनाथ मन्दिर दर्शन से पहले माता गुह्येश्वरी के दर्शन करना अनिवार्य माना जाता है। इस परंपरा का पालन वहाँ के शाही परिवार के सदस्यों द्वारा अभी भी किया जाता है। अर्थात पहले गुह्येश्वरी मंदिर की पूजा की जाती है उसके उपरांत ही अन्य मंदिरों के दर्शन किए जाते हैं।

यह शक्तिपीठ श्री पशुपतिनाथ मन्दिर से लगभग 1 किमी पूर्व में स्थित है और नेपाल के काठमांडू में बागमती नदी के तट के पास स्थित है। यह हिंदू और विशेष रूप से तांत्रिक उपासकों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। गर्भग्रह की लगभग सभी मूर्तियां सोने एवं चांदी से बनी हुई हैं।

श्री पशुपतिनाथ मंदिर ही की तरह, भारतीय एवं तिब्बती मूल के हिंदुओं तथा बौद्धों को ही मुख्य मंदिर में प्रवेश की अनुमति है। पूजा-आरती के दौरान उपयोग किए जाने वाले कई वाद्य यंत्र राजा राणा बहादुर द्वारा भेंट स्वरूप दिए गए थे।

मंदिर की वास्तुकला भूटानी पगोडा वास्तुकला शैली में बनाई गई है। प्रसिद्ध मृगस्थली वन के निकट एवं बागमती नदी के तट पर स्थित होने के कारण गुह्येश्वरी मंदिर का वातावरण हरियाली एवं फूलों से सजाया गया लगता है। अगर आप श्री गुह्येश्वरी शक्तिपीठ से वन के रास्ते श्री पशुपतिनाथ मन्दिर जा रहे हैं तो, रास्ते में आने वाले शरारती बानरों से थोड़ा सावधान रहें।

दशईं एवं नवरात्रि यहाँ मनाए जाने वाले प्रमुख त्यौहार हैं, श्री पशुपतिनाथ मन्दिर निकट होने के कारण शिवरात्रि एवं सोमवार के दिन यहाँ भी अत्यधिक श्रद्धालु दर्शन हेतु आते हैं।

 पौराणिक कथा

मंदिर का नाम संस्कृत के शब्द गुह्या (गुप्त) और ईश्वरी (देवी) से बना है। ललिता सहस्रनाम में देवी के 707 वें नाम का उल्लेख 'गुह्यरुपिनी' के रूप में किया गया है, जिसका अर्थ है कि देवी का रूप मानवीय धारणा से परे है और यह एक रहस्य है। एक और तर्क यह है कि यह षोडशी मंत्र का गुप्त १६वाँ अक्षर है। गुह्येश्वरी एक शक्ति पीठ है और माना जाता है कि यह वह स्थान है जहां देवी सती के घुटने गिरे थे। यहां देवी को महामाया या महाशिर और भगवान शिव को कपाली के रूप में पूजा जाता है।

मंदिर का उल्लेख काली तंत्र, चंडी तंत्र, शिव तंत्र रहस्य के पवित्र ग्रंथों में भी तंत्र की शक्ति प्राप्त करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में से एक के रूप में किया गया है। देवी गुहेश्वरी का विश्वस्वरूप उन्हें असंख्य हाथों वाली कई और अलग-अलग रंग की देवी के रूप में दिखाता है। मंदिर में दिव्य महिला शक्ति है और इसे सबसे शक्तिशाली पूर्ण तंत्र पीठ माना जाता है क्योंकि यह सत्रह श्मशान घाटों के ऊपर बनाया  !








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