गोपाचल पर्वत
गोपाचल जैन धर्मावलंबियों का अनूठा तीर्थ स्थल, जहां पर्वत पर स्थापित हैं हजारों जैन मूर्तियां,ग्वालियर,मध्यप्रदेश् मे स्थित है।
भारत के मध्य प्रदेश राज्य में स्थिति ग्वालियर अपने प्राचीन किलो महलों और प्राचीन मंदिर के लिए जाना जाता है उनमें से ही एक प्राचीन जगह है Gopachal Parvat (गोपाचल पर्वत) इस पर्वत पर हजारों की तादाद में पर्वत को तराशकर जैन मूर्तियां बनाई गई हैं यहाँ पर स्थित पार्श्वनाथ मंदिर गोपाचल का श्रेष्ठ धार्मिक स्थल है, जिसे जैन धर्म का प्रमुख धार्मिक केंद्र माना जाता है। आज हम इस पर्वत के इतिहास एवं विशेषताओं के बारे में आपको बताएंगे।
यह स्टूडियोधर्मा के लिए बहुत ही आनंद एवं सौभाग्य की बात है की ऐसे पवित्र,पावन और प्राचीन तीर्थ छेत्र गोपाचल पार्वत के दर्शन परम पूज्य आर्यिका पूर्णमति माता जी के सानिध्य में किए ।
गोपाचल पर्वत ग्वालियर में स्थित बहुत प्राचीन जगह है यहां हजारों की संख्या में जैन भगवान की मूर्तियां सन् 1398 से 1536 के बीच पर्वत को तराशकर बनाई गई है इन मूर्तियों का निर्माण तोमर वंश के राजा वीरमदेव, डूंगरसिंह व कीर्तिसिंह के शासन काल में कराया गया था।
लोक मत की मानें तो 22 वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ के शासनकाल में जैन श्रावकों ने गोपाचल पर्वत पर भगवान पार्श्वनाथ, केवली भगवान और 24 तीर्थंकरो की 9 इंच से लेकर 57 फुट तक की प्रतिमाएं बनाई गई थी। यहां जैन धर्मावलंबियों के तीर्थंकरों की एक से बढ़कर एक प्रतिमाएं देखने को मिलती हैं।
जैन धर्म के अनुयायियों के लिए गोपाचल पर्वत एक पवित्र स्थान है। ग्वालियर किला, जो कि पूरी दुनिया में मशहूर है उसका स्थान भी गोपाचल पर्वत पर है। इस पर्वत पर भगवान पार्श्वनाथ, केवली भगवान, और 24 तीर्थंकरों की 9 इंच से लेकर 57 फुट तक की प्रतिमाएं बनाई गई हैं, इस स्थान पर 26 गुफाएं हैं, जिनमें सभी में भगवान पार्श्वनाथ और अन्य तीर्थंकरों की खड़ी और बैठने की मुद्रा में प्रतिमाएं स्थापित हैं। जो जैन धर्म के लोगों के लिए उत्साह और श्रद्धा का प्रतीक हैं। गोपाचल पर्वत जैन धर्म में एक प्रमुख धर्मस्थल है, जहां वे अपने आत्मा की शुद्धि और मन की शांति के लिए आते हैं।
मूर्तियां नष्ट करने का दिया आदेश
इतिहास कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है। ऐसा ही एक घटना है जब मुगल सम्राट बाबर ने गोपाचल पर्वत पर अपना कब्जा कर लिया था। तब सम्राट बाबर ने गोपाचल पर्वत में बनाई गई मूर्तियों को नष्ट करने का आदेश दिया था। लेकिन इस प्रयास के दौरान एक घटना हुई बाबर ने भगवान पार्श्वनाथजी की मूर्ति पर हमला किया। इस हमले के समय एक अद्भुत घटना घटी, जो लोगों के हृदय में चमत्कार भर देती है।
दिव्य शक्तियों की कृपा से बाबर और उसके सैनिक की भुजाओं में शक्ति नहीं रह गई और वे वहां से भाग खड़े हुए और मूर्तियों को नष्ट नहीं कर पाए। आज भी यहां हजारों की तादाद में मूर्तियां बनी हुई है क्योंकि ऐसी प्रतिमाएं आज के दौर में बनाना बेहद मुश्किल है। बता दें आज भी यहाँ विश्व की सबसे विशाल 42 फुट ऊंची पद्मासन पारसनाथ की मूर्ति अपने अतिशय से पूर्ण है एवं जैन समाज के परम श्रद्धा का केंद्र है।
गोपाचल पर्वत की गहराईयों में छिपे इसके ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व को समझने के लिए, आपको इसे एक बार जरूर देखना चाहिए। यहां के प्राचीन मंदिर, तीर्थंकरों की प्रतिमाएं और शांतिपूर्ण वातावरण आपको शांति और आनंद का अनुभव कराएंगे।
यद्यपि ये प्रतिमाएं विश्व भर में अनूठी हैं, फिर भी अब तक सरकार का इस धरोहर पर कोई विशेष ध्यान नही गया है और न ही सरकार ने इनके मूल्य को समझा है।
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