महाभारत के युद्ध में अर्जुन जब कौरवों के विरुद्ध लड़ने से विचलित हुए, तब उन्होंने अपने सारथी श्रीकृष्ण से कहा –
"मैं अपने बंधु-बांधवों पर शस्त्र कैसे उठाऊँ?"
तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धर्म और कर्तव्य का उपदेश दिया, जिसे हम आज श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से जानते हैं।
युद्ध में श्रीकृष्ण ने स्वयं शस्त्र नहीं उठाया, केवल अर्जुन के रथ के सारथी बने।
लेकिन वह रथ साधारण नहीं था –
उसमें हनुमानजी ध्वज पर विराजमान थे,स्वयं कृष्ण सारथी थे,
और अर्जुन धनुष-बाण से युद्ध कर रहे थे।
युद्ध समाप्त होने के बाद, जैसे ही श्रीकृष्ण रथ से उतरे, वह दिव्य रथ तुरंत जलकर भस्म हो गया।
अर्जुन आश्चर्यचकित हुए, तब कृष्ण मुस्कुराकर बोले –
"पार्थ! यह रथ पहले ही शस्त्रों की मार से नष्ट हो चुका था। मेरी उपस्थिति के कारण ही यह अब तक सुरक्षित रहा।"
यह कथा सिखाती है कि जीवन का रथ तभी सुरक्षित रहता है जब उसमें सारथी स्वयं भगवान हों।
जब कृष्ण सारथी बनते हैं, तो युद्ध कितना भी कठिन क्यों न हो – विजय निश्चित है।
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