भगवान श्रीगणेश जी को एकदंत (एक दाँत वाले) भी कहा जाता है। उनके एकदंत होने के पीछे कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। उनमें से प्रमुख कथाएँ इस प्रकार हैं—
1. महाभारत लेखन की कथा
ऋषि वेदव्यास जी जब महाभारत की रचना कर रहे थे, तो उन्हें कोई ऐसा चाहिए था जो बिना रुके उसे लिख सके। तब उन्होंने भगवान गणेश को बुलाया।
गणेश जी ने शर्त रखी कि वे लिखते समय बीच में रुकेंगे नहीं।
व्यास जी ने भी शर्त रखी कि गणेश जी बिना अर्थ समझे कुछ भी नहीं लिखेंगे।
जब लेखन के दौरान कलम टूट गई, तो गणेश जी ने बिना रुके लिखने के लिए अपना एक दाँत तोड़कर कलम बना लिया और लेखन जारी रखा।
तभी से वे एकदंत कहलाए।
2. परशुराम जी का क्रोध
एक और कथा के अनुसार, एक बार परशुराम जी भगवान शिव से मिलने कैलाश पर्वत पर पहुँचे। उस समय शिव जी विश्राम कर रहे थे और माता पार्वती ने गणेश जी को द्वार पर पहरा देने के लिए बैठाया था।
जब परशुराम जी ने अंदर जाने का प्रयास किया, तो गणेश जी ने उन्हें रोक दिया। परशुराम जी को क्रोध आ गया और उन्होंने अपने परशु (फरसा) से गणेश जी पर प्रहार किया।
यह परशु स्वयं भगवान शिव का दिया हुआ था, इसलिए गणेश जी ने उसका सम्मान करते हुए प्रहार को झेला और उनका एक दाँत टूट गया। तभी से वे एकदंत कहलाए।
3. गणेश जी और चंद्रमा
एक कथा यह भी है कि एक बार गणेश जी अपने वाहन मूषक पर सवार होकर जा रहे थे। रास्ते में मूषक किसी साँप को देखकर डर गया, जिससे गणेश जी गिर पड़े और उनका एक दाँत टूट गया।
इस घटना को देखकर चंद्रमा हँसने लगा। तब गणेश जी ने क्रोधित होकर चंद्रमा को श्राप दिया कि जो भी भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा को देखेगा उसे कलंक लगेगा।
तभी से गणेश जी को एकदंत कहा जाने लगा।
इस प्रकार भगवान गणेश जी का एकदंत रूप ज्ञान, बलिदान, और धर्म की रक्षा का प्रतीक है।
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