तुलसी माता का विवाह शालिग्राम से क्यों कराया जाता है जानिए इसका संपूर्ण रहस्य
तुलसी विवाह की कथा वृंदा और दैत्यराज जलंधर की कहानी से जुड़ी है, जिसमें भगवान विष्णु का शालिग्राम स्वरूप तुलसी से विवाह करता है। यह कथा भक्ति, छल और अंततः एक दिव्य मिलन को दर्शाती है।
तुलसी विवाह की कथा
एक समय की बात है, दैत्यों के राजा कालनेमि की एक बेटी थी, जिसका नाम वृंदा था। वृंदा बचपन से ही भगवान विष्णु की परम भक्त थी। जब वह बड़ी हुई, तो उसका विवाह जलंधर नामक राक्षस से हुआ, जो समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा के पतिव्रता धर्म और विष्णु भक्ति के कारण जलंधर बहुत शक्तिशाली हो गया। कोई भी देवता उसे हरा नहीं पा रहा था।
जब जलंधर का अत्याचार बहुत बढ़ गया, तो सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और उनसे मदद की गुहार लगाई। देवताओं की समस्या का समाधान करने के लिए, भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण किया और छल से वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग कर दिया। वृंदा का सतीत्व भंग होते ही जलंधर की शक्ति कम हो गई और वह युद्ध में मारा गया।
जब वृंदा को इस छल के बारे में पता चला, तो वह बहुत क्रोधित हुई। उन्होंने भगवान विष्णु को पत्थर (शालिग्राम) बनने का श्राप दे दिया। यह देखकर सभी देवी-देवता परेशान हो गए और माता लक्ष्मी ने वृंदा से विष्णु जी को श्रापमुक्त करने की प्रार्थना की।
वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया और अपने पति के साथ सती हो गईं। जिस जगह वृंदा की राख थी, वहाँ तुलसी का एक पौधा उग आया। भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा कि तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे महालक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो। अब तुम तुलसी के रूप में मेरे साथ रहोगी।
भगवान विष्णु ने यह भी कहा कि शंखचूड़ का वध करने के लिए मुझे छल करना पड़ा, इसलिए पश्चाताप के रूप में मैं शालिग्राम नामक पत्थर के रूप में रहूँगा और तुम्हारी पूजा मेरे साथ होगी। उन्होंने वृंदा को वरदान दिया कि कार्तिक मास की एकादशी के दिन शालिग्राम के साथ उनका विवाह होगा।
इसी कारण से, हर वर्ष देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराया जाता है, और जो लोग यह विवाह कराते हैं, उन्हें कन्यादान का पुण्य मिलता है। यह कथा हमें भक्ति, त्याग और पवित्रता का संदेश देती है।
कथा का विस्तृत विवरण
वृंदा का तप और जलंधर का अत्याचार: दैत्य राजा जलंधर की पत्नी वृंदा भगवान विष्णु की भक्त और पतिव्रता थी। उसके पतिव्रत धर्म के कारण जलंधर को कोई भी नहीं हरा सकता था। उसने देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया।
विष्णु का छल: सभी देवताओं ने हारकर भगवान विष्णु से मदद मांगी। भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण किया और वृंदा के पास पहुंचे, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया।
श्राप और आत्मदाह: जब वृंदा को इस बात का पता चला, तो उसने क्रोधित होकर भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दिया। बाद में, देवताओं के कहने पर उसने श्राप वापस ले लिया, लेकिन स्वयं को अग्नि में समर्पित कर दिया।
तुलसी का जन्म और विवाह: वृंदा के आत्मदाह के बाद, जहां वह भस्म हुईं, वहां तुलसी का पौधा उग आया। भगवान विष्णु ने घोषणा की कि वह शालिग्राम स्वरूप में हमेशा उस पौधे के साथ रहेगा। इसी घटना की स्मृति में, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर तुलसी और शालिग्राम का विवाह किया जाता है।
 
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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