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Friday, 4 October 2024

मानस शक्ति पीठ मानसरोवर तिब्बत

मानस शक्तिपीठ हिन्दू धर्म में प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में से एक है।

हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ माता सती के अंग के टुकड़े, धारण किये हुए वस्त्र और आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ पर शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। इन शक्तिपीठों का धार्मिक दृष्टि से बड़ा ही महत्त्व है। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उप-महाद्वीप में फैले हुए हैं। देवीपुराण में ५१ शक्तिपीठों का वर्णन है। 

हिंदुओं के लिए कैलास पर्वत 'भगवान शिव का सिंहासन' है। बौद्धों के लिए विशाल प्राकृतिक मण्डप और जैनियों के लिए #ऋषभदेव का निर्वाण स्थल है। हिन्दू तथा बौद्ध दोनों ही इसे तांत्रिक शक्तियों का भण्डार मानते हैं। भले ही भौगोलिक दृष्टि से यह चीन के अधीन है तथापि यह हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और तिब्बतियों के लिए अति-पुरातन तीर्थस्थान है।

तिब्बत के मानसरोवर तट पर स्थित है मानस शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना हथेली का निपात हुआ था। यहां की शक्ति की दाक्षायणी तथा भैरव देव अमर हैं।  मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। मनसा देवी मुख्यत: सर्पों से आच्छादित तथा कमल पर विराजित हैं ७ नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं।

आदि शक्तिपीठों की संख्या ४ मानी जाती है।कालिकापुराण में शक्तिपीठों की संख्या २६ बताई गई है। शिव चरित्र के अनुसार शक्ति पीठों की संख्या ५१ हैं। तंत्र चूड़ामणि, मार्कण्डेय पुराण के अनुसार शक्ति-पीठ ५२ हैं। भागवत में शक्तिपीठों की संख्या १०८ बताई गई है।

 आदि शक्ति के एक रूप सती ने शिवजी से विवाह किया, लेकिन इस विवाह से सती के पिता दक्ष खुश नहीं थे। बाद में दक्ष ने एक यज्ञ किया तो उसमें सती को छोड़कर सभी देवताओं को आमंत्रित किया। सती बिना बुलाए यज्ञ में चली गईं। दक्ष ने शिवजी के बारे में अपमानजनक बातें कहीं। सती इसे सह न सकीं और सशरीर यज्ञाग्नि में स्वयं को समर्पित कर दिया। दुख में डूबे शिव ने सती के शरीर को उठाकर विनाश नृत्य आरंभ किया। इसे रोकने के लिए विष्णु ने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल कर सती की देह के टुकड़े किए। जहां-जहां सती के शरीर के अंग गिरे, वो स्थान शक्तिपीठ बन गए। 

देवी माँ का शक्तिपीठ चीन अधिकृत मानसरोवर के तट पर है, जहाँ सती की 'बायीं हथेली' का निपात हुआ था। यहाँ की शक्ति 'दाक्षायणी'​ तथा भैरव 'अमर' हैं। 'कैलास शक्तिपीठ' मानसरोवर का गौरवपूर्ण वर्णन हिन्दू, बौद्ध, जैन धर्मग्रंथों में मिलता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार यह ब्रह्मा के मन से निर्मित होने के कारण ही इसे 'मानसरोवर' कहा गया। यहाँ स्वयं शिव हंस रूप में विहार करते हैं। जैन धर्मग्रंथों में कैलास को 'अष्टपद' तथा मानसरोवर को 'पद्महद' कहा गया है। इसके सरोवर में अनेक तीर्थंकरों ने स्नान कर तपस्या की थी। बुद्ध के जन्म के साथ भी मानसरोवर का घनिष्ट संबंध है। तिब्बती धर्मग्रंथ 'कंगरी करछक' में मानसरोवर की देवी 'दोर्जे फांग्मो' यहाँ निवास कहा गया है। यहाँ भगवान देमचोर्ग, देवी फांग्मो के साथ नित्य विहार करते हैं। इस ग्रंथ में मानसरोवर को 'त्सोमफम' कहते हैं, जिसके पीछे मान्यता है कि भारत से एक बड़ी मछली आकर उस सरोवर में 'मफम' करते हुए प्रविष्ट हुई। इसी से इसका नाम 'त्सोमफम' पड़ गया। मानसरोवर के पास ही राक्षस ताल है, जिसे 'रावण हृद' भी कहते हैं। मानसरोवर का जल एक छोटी नदी द्वारा राक्षस ताल तक जाता है। तिब्बती इस नदी को 'लंगकत्सु' कहते हैं। जैन-ग्रंथों के अनुसार रावण एक बार 'अष्टपद' की यात्रा पर आया और उसने 'पद्महद' में स्नान करना चाहा, किंतु देवताओं ने उसे रोक दिया। तब उसने एक सरोवर, 'रावणहृद' का निर्माण किया और उसमें मानसरोवर की धारा ले आया तथा स्नान किया।

'मानसे कुमुदा प्रोक्ता' के अनुसार यहाँ की शक्ति 'कुमुदा' हैं, जबकि तंत्र चूड़ामणि के अनुसार शक्ति 'दाक्षायणी' हैं।

'मानसे दक्षहस्तो में देवी दाक्षायणी हर।

अमरो भैरवस्तत्र सर्वसिद्धि विधायकः॥

राम मनसा निर्मित परम्। 

ब्रह्मणा नरशार्दूल तेनेदं मानसं सरः॥

(वाल्मीकि रामायण)

हमारे पुराणों और ग्रंथों में ‘कैलास पर्वत’ को भगवान शंकर और मां पार्वती का निवास स्‍थान बताया गया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार शिवजी अपने सभी गणों के साथ इस अलौकिक स्थान पर रहते हैं। शिवपुराण के अनुसार, कैलास धन के देवता और देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर की तपस्थली है। उन्हीं की तपस्या से प्रसन्न होकर भोले भंडारी ने कैलास पर निवास करने का वचन दिया था। इस स्थान को ही कुबेर देवता की अलकापुरी की संज्ञा दी जाती है।

कैलास पर्वत २२,०२८ फीट ऊंचा पिरामिड है। यह पूरे साल बर्फ की सफेद चादर में लिपटा रहता है। मान्‍यता है कि यह पर्वत स्‍वयंभू है। साथ ही यह उतना ही पुराना है जितनी हमारी सृष्टि है। इस अलौकिक जगह पर प्रकाश और ध्‍वनि तरंगों का समागम होता है जो ‘ऊं’ की प्रतिध्‍वनि करता है। कैलाश पर्वत की तलछटी में कल्‍पवृक्ष लगा हुआ है। इस पर्वत का स्‍वरूप अद्भुत है। यही वजह है इसके हर भाग को अलग-अलग नामों से संबोधित किया जाता है। पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व को क्रिस्‍टल, पश्चिम को रूबी और उत्‍तर को स्‍वर्ण के रूप में माना जाता है। पौराणिक कथाओं में यह जिक्र मिलता है कि यह स्‍थान कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्‍णु के करकमलों से निकलकर गंगा कैलास पर्वत की चोटी पर गिरती है। यहां से भोलेनाथ उन्‍हें अपनी जटाओं में भरकर धरती पर प्रवाहित करते हैं।

कैलास में मानसरोवर दर्शन की विशेष महिमा है। मान्‍यता है कि महाराज मानधाता ने मानसरोवर झील की खोज की थी। इसके अलावा उन्‍होंने इसी झील के किनारे कई वर्षों तक कठोर तपस्‍या की थी। इसके अलावा इस जगह के बारे में बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि इसके केंद्र में एक वृक्ष है, जिसके फलों के चिकित्सकीय गुण सभी प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों का उपचार करने में सक्षम हैं।


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