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Thursday, 10 October 2024

नवरात्रि के आठवें दिन मां दुर्गा का आठवां रूप माता महागौरी की पूजा की जाती है जानिये

 नवरात्रि के आठवें दिन मां दुर्गा का आठवां रूप माता महागौरी की पूजा की जाती है। माता अपने भक्तों के भीतर पल रही बुराइयों को मिटाकर उनको सद्बुद्धि व ज्ञान की ज्योति जलाती है। मां महागौरी की आराधना करने से व्यक्ति को आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है और उसके भीतर श्रद्धा विश्वास व निष्ठा की भावना को बढ़ाता है।

माता महागौरी, मां दुर्गा की अष्टम शक्ति है जिसकी आराधना करने से भक्तजनों को जीवन की सही राह का ज्ञान होता है और जिस पर चलकर लोग अपने जीवन का सार्थक बना सकते हैं। जो भी साधक नवरात्रि में माता के इस रूप की आराधना करते हैं माँ उनके समस्त पापों का नाश करती है। अस्टमी के दिन व्रत रहकर मां की पूजा करते हैं और उसे भोग लगाकर मां का प्रसाद ग्रहण करते हैं, इससे व्यक्ति के अन्दर के सारे दुष्प्रभाव नष्ट हो जाते हैं।

नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की आराधना से साधक के समस्त पापों का नाश होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, गौर वर्ण प्राप्त करने के लिए मां ने बहुत कठिन तपस्या की थी। मां महागौरी की उत्पत्ति के समय इनकी आयु मात्र आठ वर्ष की थी, इसी कारण से माता का पूजन अष्टमी के दिन किया जाता है। मां अपने सभी भक्तों के लिए अन्नपूर्णा स्वरूप है। अष्टमी के ही दिन कन्याओं के पूजन का विधान है। मां महागौरी धन, वैभव, तथा सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं।

मां का स्वरूप शंख, चन्द्र व कुंद के फूल के समान उज्जवल है। मां वृषभ (बैल) की सवारी करती हैं तथा माता शांति स्वरूपा हैं। कहा जाता है कि मां ने भगवन शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए बहुत कठोर तपस्या की थी जिसके कारण उनका सम्पूर्ण शरीर मिट्टी से ढक गया था। भगवान महादेव माँ की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी पत्नी होने का वरदान दिया। भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगाजल से धोया जिसके बाद मां गौरी का शरीर विद्युत के समान गौर व उज्जवल हो गया। कहते हैं इसी कारण इनका नाम महागौरी पड़ा।

माता की चार भुजाएं हैं जिनमें से दो अभयमुद्रा और वरमुद्रा में हैं तथा दो में त्रिशूल और डमरू धारण किया हुआ है। अपने सभी रूपों में से महागौरी, माँ दुर्गा का सबसे शांत रूप है। मां महागौरी को संगीत व गायन बहुत अच्छा लगता है इसलिए माता के पूजन में संगीत अवश्य होता है। कहा जाता है कि आज के दिन जो भक्त कन्याओं को भोजन कराकर उनका आर्शीवाद लेते हैं, मां उन्हें आर्शीवाद अवश्य देती है तथा उनका जीवन खुशियों से भर देती हैं। हिन्दू धर्म में अष्टमी के दिन कन्याओं को भोजन कराए जाने की परम्परा है।

ध्यान मंत्र

                " श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेतांबरधरा शुचि।

                  महागौरी शुभे दद्यान्महादेव प्रमोददा।। "



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