श्री कृष्ण सुदामा धाम -नारायण धामम-हिदपुर तहसील-उज्जैन-म्ध्य् प्रदेश
यहाँ कृष्ण संग विराजित है सुदामा, दोस्ती को समर्पित है यह मंदिर
भारत में ऐसे न जाने कितने कृष्ण मंदिर हैं जहां कि अपनी अलग विशेषता है। ऐसा ही एक मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन से कुछ दूरी पर स्थित है। इस मंदिर को नारायण धाम के रूप में जाना जाता है। यह मंदिर कृष्ण और उनके बाल सखा सुदामा की दोस्ती को समर्पित है।
ये है मंदिर का महत्व
भगवान श्रीकृष्ण शिक्षा ग्रहण करने उज्जैन स्थित गुरु सांदीपनि के आश्रम में आए थे, ये बात तो सभी जानते हैं। यहां उनकी मित्रता सुदामा नाम के गरीब ब्राह्मण से हुई थी। श्रीमद्भागवत के अनुसार एक दिन गुरु माता ने श्रीकृष्ण व सुदामा को लकडियां लाने के लिए भेजा। आश्रम लौटते समय तेज बारिश शुरू हो गई और श्रीकृष्ण-सुदामा ने एक स्थान पर रुक कर विश्राम किया। मान्यता है कि नारायण धाम वही स्थान है जहां श्रीकृष्ण व सुदामा बारिश से बचने के लिए रुके थे। इस मंदिर में दोनों ओर स्थित हरे-भरे पेड़ों के बारे में लोग कहते हैं कि ये पेड़ उन्हीं लकड़ियों के गट्ठर से फले-फूले हैं जो श्रीकृष्ण व सुदामा ने एकत्रित की थी।
नारायण धाम मंदिर में स्थित वो पेड़, जिनके बारे में मान्यता है कि ये पेड़ उन्हीं लकड़ियों से फले-फूले हैं जो श्रीकृष्ण व सुदामा ने एकत्रित की थी।
श्रीकृष्ण-सुदामा मैत्री स्थल; गांव नारायणा का वो स्थान जहां भगवान के हिस्से के चने खा गए थे सुदामा इसीलिए दरिद्र हो गए थे सुदामा
श्रीमद्भागवत महापुराण के दसवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण व सुदामाजी की मैत्री का उल्लेख मिलता है। यह स्थल उज्जैन जिले की महिदपुर तहसील के गांव नारायणा को बताया जाता है। पांच हजार साल बाद भी लकड़ियों के गट्ठर का मौजूद रहना भगवद् कृपा को दर्शाता है। मान्यता है कि लकड़ियां एकत्रित करने के लिए वन भेजते समय गुरुमाता ने दोनों मित्र (कृष्ण-सुदामा) को खाने के लिए चने दिए थे। बाद में नारायणा गांव में बारिश के दौरान सुदामा ने श्रीकृष्ण के हिस्से के चने भी खा लिए। बताया जाता है कि भगवान के हिस्से का अन्न खाने के कारण ही सुदामा दरिद्र हुए। बाद में कृष्ण द्वारिकाधीश हुए और अपने मित्र की दरिद्रता को दूर किया।
नारायण धाम मंदिर उज्जैन जिले की महिदपुर तहसील सेे लगभग 9 किलोमीटर दूर स्थित है। यह भारतवर्ष में एक मात्र मंदिर है, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण अपने मित्र सुदामा के साथ मूर्ति रूप में विराजित हैं। श्रीकृष्ण व सुदामा की मित्रता का प्रमाण नारायण धाम मंदिर में स्थित पेड़ों के रूप में आज भी देखा जा सकता है। मंदिर प्रबंध समिति व प्रशासन के सहयोग से अब इस मंदिर को मित्र स्थल के रूप में नई पहचान दी जा रही है।
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